गुरुवार, 5 जून 2014

सौगात

(छायाचित्र सहयोग: वसुधा )
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तुम आये हो मिलने मुझे, मै भी तो हूँ पागल
सब छोड़ छाड़ काम मैं, घर से पड़ी निकल
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ईस बार जो आये हो तो मिलना जऱा खुलके
मैं लाई हूँ सिमटे हुए अरमान ये दिल के
जी लूँ जऱा मैं टूटके खुशियोँ से भरे पल
सब छोड़ छाड़ काम मैं, घर से पड़ी निकल
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भरलो मुझे बाहों में रूह को पिघलने दो
मन बहकेगा दिल धडकेगा खुलके धडकने दो
मस्ती भरी सौगात से भर लू मेरा आँचल
सब छोड़ छाड़ काम मैं, घर से पड़ी निकल
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लाते हो तुम साथ भिगाभिगा सा मौसम
छोड के जाते हो तुम हो जाते कहीं गुम
जाना नहीं इस बार मेरे सुनहरे बादल
सब छोड़ छाड़ काम मैं, घर से पड़ी निकल
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~ तुष्की
नागपूर, ०५ जून २०१४, ०८:३०

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